Thursday, December 23, 2010

अक्षय रोमांचित है, कैटरीना प्रफुल्लित और फरहा गर्वित; हो भी क्यों ना शीला जो मशहूर हो गई;अक्ष्य सबसे फूहड अभिनेताओं में से एक हैं; उनकी खटृटा-मीठा देखने के बाद यह धारणा और भी प्रबल हो गई; उनकी नई फिल्म तीस मार खां का टाइटल गाने में अक्षय की एक पंक्ति है ..............'' तवायफ की लूटती..........'' आगे तो मुझे लिखने में भी शर्म आती है; मेरे यह समझ में नहीं आया कि फिल्म बनाने वाले ने क्या सोचकर यह लाइन इतनी सहजता से डाल दी; ना जाने यह अक्षय की फूहडता है या फरहा की गंदी सोच की धूल या आज के समाज की उदासीनता;
कोई समाधान करें

Monday, December 13, 2010

Õâ Øæð´ ãUè

1.

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2.

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¥»Üæ SÅUæòÂÐ ¥æÆU Îâ Üæð»æð´ ·¤è ÖèǸ ¿É¸UèÐ ©UÙ×ðð´ ·é¤ÀU ×ÁÎÎêÚU Öè, »´Îð ¥æñÚU ·¤×ÁæðÚUÐ âÕâð ÂèÀðU °·¤ ¥ŠæðǸ ×ÁÎÎêÚUÐ ŠæèÚÔU- ŠæèÚÔU ¿ÜÌÌæ ãéU¥æ ØéßÌè ·¤æð ÂæÚU ·¤ÚUÙð ãUè ßæÜæ Íæ ç·¤ ØéßÌè ¹Ç¸è ãUæ𠻧üUÐ ãUæÜæ´ç·¤ ©Uâ·¤æ SÅUæò ¥Õ Öè ÎêÚU ÍæÐ



Monday, December 6, 2010

अशोक वाजपेयी जी से मेरा इंटरव्यू

मिलने और फु रसत के नाम

सं

डे क ा मतलब ही होता है छु ट्ट ी। वो दिन
जिस दिन सभी क ामों से छु टक ारा पाक र
आराम क रने क ा पूर ा मौक ा मिलता है ।
इस दिन क ा खास इं तजार होता है €योंकि इस
दिन क हीं आना जाना नहीं होता। मतलब कि पूर ा
दिन घर पर गुजारने क ी पूर ी आजादी। इसी दिन
घरवालों और मित्रों के साथ मिल बैठ ने मौक ा
मिलता है । भागदौड़ भरी जिंदगी से अवक ाश।
बचपन में जब स्कू ल जाया क रते थे तब संडे क ा
दिन के वल धमाचौक ड़ी, मौज मस्ती और खेल
कू द में ही निक ल जाया क रता था। उस दिन
स्क ूल जाने और पढ़ ने लिखने क ी बंदिश नहीं
होती थी। क ॉलेज में भी क मोबेश यही स्थिति
थी। जब क ाम क रना शुरू कि या तो थोड़ी स्थिति
बदल गई ।
आज जब पुर ाने दिनों से तुलना क रता हूं तो
मेरे लिए संडे क ा स्वरू प बदल गया है €योंकि
ना तो अब दफ्तर जाना पड़ता है और ना ही क ाम ■ अशोक वाजपेयी, क वि
खत्म क रने क ी बंदिश होती है । पढ़ ाई के बाद
जब मैं क ाम क रने लगा तो सप्ताह के छह दिनों में दफ्तर में क ाम क रना होता था और लिखने
क ा समय ही नहीं मिल पाता था। इसलिए इस दिन मैं केे वल लिखने क ा क ाम क रता था पर
अब वो समय और वो बात नहीं रही। अब लिखने क ा पर्याप्त समय होता है इसलिए संडे
के दिन मैं के वल पढ़ ने क ा और प्रियजनों के साथ समय बिताने क ा क ाम क रता हूं । अब तो
संडे क ी शुरू आत ही अखबार पढ़ ने के साथ होती है । मेर े दो तीन घंटे तो अखबार पढ़ ने में
ही निक ल जाते हैं । हम लोगों क ा तो क ाम ही है पढ़ ने और लिखने क ा है , पढ़ ने लिखने के
शौक के क ारण मेरे लिए सबसे बेह तरीन संड े शायद वो होगा जब मेरे पास पढ़ ने क ा पर्याप्त
अवक ाश हो और मैं मल्लिक ार्जुन मंसूर और कु मार गंधर्व के संगीत क ो सुनते हु ए निर्बाध
पढ़ ता ही रहूं ।
विदेशों में संडे के दिन सब कु छ बंद होता है इसलिए वहां सब कु छ सूना सूना लगता है ।
थोड़ा अटपटा लगता है कि वहां इस दिन कु छ भी खुला नहीं मिलता। इस दिन वहां आप
कि सी से मिल भी नहीं सक ते। हमारे देश में तो हम अपनी व्यस्तताओं के बीच कि सी से
मिल ही संडे क ो सक ते हैं । पिछले संडे क ो मैंने पाŽलो नेरू दा क ी प्रेमिक ा, जो बाद में उनक ी
पत्नी भी बनी, क ी आत्मक था पढ़ ी। इसे पढ़ ते हु ए क ाफ ी समय गुजर गया। शाम क ो अपने
दोस्तों के साथ इधर-उधर क ी बातें और हं सी-मजाक में समय गुजारा।
अर्पिता शर्मा से बातचीत पर आधारित

मेरा संडे

Wednesday, September 29, 2010

मजबूरी

कामगारों की भीड़, बेतहाशा बेरोजगारी, विशाल जनसँख्या यही तो पहचान रह गयी ह मेरे देश की! शायद यही कारन है कि आधुनिक कसम प्रदाता कम पैसों में ज्यादा कम लेने कि तमन्ना पाले उनका शोषण कर रहे हैं ! उनकी दुविधा भी देखी कि वो कम मेहनताने में ही काम करने को मजबूर हैं!

Thursday, August 5, 2010

यक्ष prashna

इश्वर इस स्रष्टि को बनाने के बाद या तो इतना खुश है की कही पार्टी मन रहा है या इतना शर्मिंदा है की वो हमारे सामने आने की हिम्मत नहीं कर रहा है!
अखबार में कम अपने मन लायक मिल गया है! साहित्य में रूचि तो थी ही अब लिखने में भी निखर आ जाएगा!

Wednesday, May 12, 2010

प्रेम का अंकुर चमत्कारपूर्ण होता है जेसे अभी-अभी हृदय में परमाणु विस्फोट हुआ हो-जयप्रकाश चोकसे